1969 में हरबर्ट ए. साइमन(Herbert A.Simon) द्वारा लिखित द साइंस अॉफ द आर्टिफिशियल(Sciences of the Artificial), पुस्तक में उत्पन्न जटिल समस्याओं को सुलझाने के तरीके के रूप में डिजाइन का उपयोग करने का विचार दिया गया है। 1973 में रॉबर्ट मैक्किम(Robert McKim) द्वारा लिखित पुस्तक एक्सपीरियंस इन विजुअल थिंकिंग(Experiences in Visual Thinking) इंजीनियरिंग से भी डिजाइन इंजीनियरिंग के लिए भी यही उद्देश्य प्राप्त किया गया था।
1987 में पीटर रोव(Peter Rowes) की "डिज़ाइन थिंकिंग" नामक पुस्तक ने तरीकों और दृष्टिकोण को वर्णित किया जो योजनाकार, डिजाइनर और वास्तुकार उपयोग करते हैं। 1980 से 1990 के दौरान रॉबर्ट मैक्किम का काम स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में रॉल्फ फिस्ट द्वारा समेकित किया गया और उसके बाद, डेविड एम.केली(David M. Kelly) ने व्यापारिक हितों के लिए डिजाइन थिंकिंग को रूपांतरित किया। 1991 में डेविड एम. केली ने आईडीईओ(IDEO) कि स्थापना की।
ग्राहकों की समस्याओं को हल करने और उनकी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करने वाले अधिकांश उद्योग असफल हो रहे हैं क्योंकि वे बाहर की समस्याओं की ओर ज्यादा देखते हैं। हालांकि कई समस्याएं एक बेहतर तरीके से हल हो सकती हैं अगर हम उन्हें भीतर से बाहर की तरफ देखते हैं।
फोर्ब्स में एक लेख के मुताबिक दुनिया भर में संगठनों द्वारा कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जो बहुआयामी होते हैं और जटिल व्यावसायिक मॉडल का हिस्सा होते हैं। वैश्विक लेनदेन का विस्तार, अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी की वृद्धि और मानव संसाधनों के विकेन्द्रीकृत आधार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिन्हें वैश्विक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है और इसलिए, समस्याओं का समाधान करने के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यक्ता होती है।
इस तरह की समस्याओं को बहुआयामी समाधान की आवश्यकता होती है। इस संबंध में डिजाइन सोच मदद करती है। यह न केवल एक पेशेवर की सहायता समाधान को जुटाने के लिए करता है बल्कि यह संगठन को प्रतिस्पर्धा में अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त हासिल करने में भी मदद करता है। डिज़ाइन थिंकिंग के निम्नलिखित लाभ होते हैं वैसे ये भी डिजाइन थिंकिंग की ख़ास विशेषताएं हैं।
दुनिया में अधिकांश चुनौतियां हल नहीं होती हैं, क्योंकि लोग उन समस्याओं को दूर करने की कोशिश कर रहे होते हैं, जो समस्या के ब्यौरे पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं। दूसरी बार, समस्या के ब्यौरे की अनदेखी करते हैं और समाधान खोजने के लिए बहुत तनाव होता है।
डिजाइन थिंकिंग समस्या के ब्यौरे और विकसित समाधान के बीच एक संतुलन हासिल करने में मदद करता है। एक डिजाइन उन्मुख मानसिकता समस्या पर केंद्रित नहीं होती है बल्कि समाधान केंद्रित और क्रिया उन्मुख होती है। इसे विश्लेषण और कल्पना दोनों को शामिल करना होता है। डिज़ाइन थिंकिंग डिजाइन की सहायता से समस्याओं को हल करने और समस्याग्रस्त स्थितियों को हल करने का तरीका होती है।
डिजाइन थिंकिंग को नवाचार के लिए एक रणनीति माना जाता है। यह नवाचार में नाटकीय तौर पर सुधार करता है। यही कारण है कि डिजाइन थिंकिंग प्रभावी रणनीति विकास और निर्बाध संगठनात्मक परिवर्तन का मूल बनाती है। उत्पाद, सेवाओं, प्रक्रियाओं आदि से जो कुछ भी मानवीय क्रियाकलाप को शामिल करता है, डिजाइन थिंकिंग के माध्यम से उनमें सुधार किया जा सकता है। यह सब डिजाइनरों के बनाने(create), प्रबंधित(manage), नेतृत्व(lead) और नया(innovate) करने के तरीके पर निर्भर करता है।
डिजाइन थिंकिंग का मूल सिद्धांत यह है कि नवाचार को अनुशासित किया जा सकता है। नवाचार एक भ्रांतिजनक इकाई नहीं होती है, जिसे केवल कुछ प्रतिभाशाली लोग ही अनुभव कर सकते हैं। बल्कि यह एक अभ्यास होता है जिसे व्यावहारिक और सावधानीपूर्वक उपकरण पद्धतियों द्वारा व्यवस्थित रूप से संपर्क किया जा सकता है।
डिजाइन थिंकिंग आपको निम्न बातों को सीखने में मदद करती है।
डिजाइन थिंकिंग हर पेशे के लोगों को योजनाबद्ध, संगठित और व्यवस्थित तरीके से समाधान को पाने में मदद करती है। स्टेप-बाए-स्टेप प्रक्रिया समस्या के ब्यौरे और आवश्यक समाधान दोनों के साथ समाधान तैयार करने में मदद करती है।