कर्मचारियों की व्यक्तिगत उत्पादकता कीसफल वृद्धि, उनके आत्म-मूल्यांकन पर निर्भर करती है। कर्मचारी को यह ध्यान रखना चाहिए कि उसका आत्म-मूल्यांकन, उसके कार्य-निष्पादन (performance) के स्तर और उत्पादन की गुणवत्ता (quality) से स्पष्ट होना चाहिए। इस स्पष्टता को प्राप्त करने के लिए, प्रबंधक वर्ग द्वारा की जाने वाली उसके कार्य-निष्पादन की त्रैमासिक समीक्षा के अतिरिक्त, उसे स्वयं अपने कार्य का आवधिक मूल्यांकन करते रहना चाहिए, जिसमें कर्मचारी से इसमें शामिल होने और प्रदर्शन में सुधार लाने की दिशा में एक रचनात्मक कदम उठाने की उम्मीद होती है।
इस प्रकार की कार्रवाई से कर्मचारी को उन क्षेत्रों का पता लगाने में सहायता मिलती है, जिनमें वे परिवर्तन और सुधार करना चाहते हैं। इससे उसे उन अलग-अलग क्षेत्रों की पहचान करने में भी सहायता मिलती है, जिन पर वह प्रबंधन से बात कर सकता है, ताकि वे उनकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए कोई तरीका बता सकें।
मूल्यांकन, केवल उन्हीं लोगों का नहीं किया जाता है जिन्हें अपने कार्य में सुधार करने कि आवश्यकता है। यह वास्तव में अच्छा कार्य करने वाले लोगों का पता लगाने में भी सहायक होता है, ताकि उनके मेहनत की पहचान की जा सके और उन्हें पुरस्कार दिया जा सके। एक सुसंगत पुरस्कार प्रणाली कर्मचारियों को प्रोत्साहित करती है और अपना कार्य सर्वोत्तम तरीके से करने के लिए प्रेरित करती है।
कर्मचारी अपने कार्यस्थल के माहौल में परिवर्तन होने पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, इस बात को ध्यान में रखते हुए, कर्ट लेविन ने “थ्री फेज़ थ्योरी ऑफ चेंज” दी है। इस सिद्धान्त का संबंध काफी हद तक कार्य-प्रबंधन से है। इस सिद्धांत में बताया गया है कि परिवर्तन को अपनाने का प्रयास करने वाला कोई भी कर्मचारी निम्नलिखित तीन चरणों से गुजरता है −
कर्मचारी के लिए यह एक महत्वपूर्ण चरण है, जिसके दौरान वह बदलाव और इसके कारण को समझने की कोशिश करता है। उसके बाद, वह बदलाव को स्वीकार करने के लिए खुद तैयार होना शुरु करता है और इसके अनुकूल बनने की कोशिश करता है।
इस चरण के दौरान, व्यक्ति यह महसूस करता है कि जिस सुखद माहौल में वह काम कर रहा था, वह भी बदलने वाला है। इस समय, वह सुखद कार्य वातावरण न रहने के नुकसान की तुलना बदलाव के अनुकूल होने के फायदों से करता है। यह फोर्स फिल्ड़ एनालिसिस ( Force Field Analysis) कहलाता है।
लेविन ने इस बात का उल्लेख किया था कि परिवर्तन एक बार होने वाली घटना नहीं होती है, लेकिन यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जो सिस्टम के आसपास होने वाले बदलावों पर निर्भर करती है। दूसरे शब्दों में, सिस्टम में परिवर्तन आसपास के वातावरण में होने वाले बदलावों के कारण होता है। यह चरण इसलिए इतना कठिन होता है क्योंकि यह बात कोई नहीं जानता है कि भविष्य में क्या होने वाला है । इसलिए किसी भी संगठन में ऐसा परिवर्तन लाना कठिन होता है, जो लंबे समय तक टिक सके ।
इसीप्रकार की दुविधा से लोग उस समय गुजरते हैं, जब विद्यालय में पढने हेतु विद्यार्थीयों के लिए पाठ्य-सामग्री तैयार करते हैं । भले ही हम पक्की तरह यह नहीं जानते कि अगले दिन क्या होने वाला है, फिर भी हम उन लोगों के लिए शिक्षा की ऐसी विषय-वस्तु तैयार करना चाहते हैं, जिसके संबंध में हम उम्मीद करते हैं कि वह प्रासंगिक बनी रहेगी और दशकों तक उनके कैरियर के निर्माण में सहायक होगी।
ऐसी स्थिति में, जहां लोगों को परिस्थितियों का अनुमान लगाना होता है और वर्तमान के आधार पर निर्णय लेना होता है, वहाँ आदर्श तरीका यह है कि सरल और साधारण लक्ष्य रखने के बजाय चुनौतीपूर्ण लक्ष्यों के बारे में सोचें और उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करें।
यह चरण, नए परिवर्तनों को स्थापित करने और सिस्टम में स्थिरता लाने के लिए होता है। इस चरण को पूरी तरह लागू करने में अन्य दो चरणों की तुलना में अधिक समय लग सकता है, और इस दौरान तब तक बार-बार अनफ्रीजिंग की घटनाएं होती रहती हैं जब तक यह कुछ समय तक के लिए स्थिर नहीं हो जाता है।