कंफर्ट जोन से परे


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आज के युग में विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में रोज़ाना इस तरह के कई कार्यक्रम देखने को मिलते हैं। इस तरह के कार्यक्रमों से प्रभावित होकर विश्व भर की संस्थायें अपनी रणनीति, व्यवसायिक नज़रिया और निवेशों में बदलाव करती रहती हैं। कभी-कभी इस तरह के बदलाव धीरे-धीरे होते हैं और कुछ मामलों में अचानक परिवर्तन भी देखा जाता है।

इस बदलते दौर में संस्थाओं ने यह जान लिया है कि व्यापार में बदलाव होना कार्य का एक अभिन्न हिस्सा है उन्हें इसी बदलाव के अनुसार तेजी से अपने आप को ढालना पड़ेगा, इसलिये वे आये हुये मौके को हाथ से नहीं छोड़ते। ऐसी परिस्थिति में कर्मचारियों को उनकी संस्था की रणनिति में किये जाने वाले बदलावों पर सवाल नहीं उठाना चाहिये। बल्कि उनको इस पर विचार करना चाहिये कि वो संस्था में किये जाने वाले बदलाव के अनुसार अपने आप को बेहतर तरीके से कैसे ढालें।

सीखने का पहला चरण यही है कि हमें अपने पूर्वनिर्धारित विचारधारा से बाहर झाँककर देखना चाहिये। इसका अभिप्राय चीजों को अलग-अलग परिस्थिति और नज़रिये से देखने को लेकर है। किसी भी समस्या के लिए एकल दृष्टिकोण अपनाना ऐसे सहकर्मियों को विमुख कर देगा जिनके पास एक परिस्थिति के हल के लिए अलग और बेहतर विचार हों।अपने पूर्वनिर्धारित विचारधारा से बाहर निकलने का मतलब विभिन्न लोगों की राय सुनना और इन आदानों के आधार पर तथ्यों का विश्लेषण करना होता है।

कंफर्ट जोन से परे

अक्सर, हम बिना आवश्यक डेटा के एक निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं। किसी समस्या से निपटने के लिए पूर्वनिर्धारित दृष्टिकोण वाले लोग समस्या को बिना सुने सुलझाने की आदत रखते हैं। ऐसा इसीलिए है क्योंकि वे नए परिदृश्यों से आनेवाली चुनौतियाँ पसंद नहीं करते। दूसरे शब्दों में, वे अपनी पूर्वनिर्धारित दृष्टिकोण से बाहर निकलने में सहज महसूस नहीं करते हैं। हालांकि, कुशल प्रबंधकों को हमेशा नए संघर्षों का सामना करने के लिए खुद को चुनौती देना पसंद होता है, ताकि वे बेहतर प्रबंधक बन सकें।

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