समीक्षात्मक सोच - एक परिचय


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ज्ञान पर आधारित आज की दुनिया में उन लोगों को विशेष लाभ मिलता है जो समीक्षात्मक ढंग से सोचने के साथ-साथ अपने ज्ञान को बढ़ाते रहते हैं। समीक्षात्मक सोच आपकी विश्लेषणात्मक कौशल को विकसित करने में आपकी सहायता करती है, ताकि आप दिए गए डेटा का मूल्यांकन कर सकें और सबसे बेहतर तरीके से इसकी व्याख्या कर सकें। इसके जरिये हम विकट परिस्थितियों में त्रुटि रहित काम करने के साथ-साथ सही निर्णय भी ले पाते हैं।

समीक्षात्मक सोच का परिचय

दूसरे शब्दों में कहा जाये तो, समीक्षात्मक सोच निर्णय लेने की तार्किक तकनीक के साथ-साथ और निर्णय लेने के कौशल में वृद्धि करने की सलाहियत मुहैया कराता है। यह सिर्फ इससे संबंधित नहीं है कि हम किस प्रकार सोचते हैं या तथ्यों का विश्लेषण करते हैं बल्कि इससे जुड़े तथ्यों का इस्तेमाल हम कार्य और कार्य के प्रति प्रतिक्रिया के निर्णय के संबंध में भी करते हैं। कार्रवाही समीक्षात्मक तर्कों का एक महत्वपूर्ण चरण होती है क्योंकि समीक्षात्मक तर्कों की संपूर्ण अवधारणा ठोस, अकाट्य सबूतों पर कार्रवाही करने पर ही आधारित होती है।

उपलब्ध जानकारी के आधार पर किसी भी चीज की सत्यता या परिमाण का निर्धारण करने की दक्षता को ही रीज़निंग कहा जाता है। यही इसकी ख़ासियत है जिसने गुफा में रहने वाले मानव प्रजाति के लोगों को विकसित करके दुनिया में सबसे प्रतिष्ठित मुकाम तक पहुँचाया है। हालांकि, मानव की तर्क शक्ति हमेशा सही नहीं होती क्योंकि यह हमेशा तर्क के आधार पर नहीं होती है। अक्सर यह देखा गया है कि मानव की तर्क शक्ति भावनाओं से प्रभावित होता है। पक्षपात इन भावनाओं में अहम जगह रखता है। हम लोगों को उनके प्रदर्शन के आधार पर मापते हैं, लेकिन अक्सर हम गलत भी साबित हो जाते हैं।

सेवा उद्योग में कई मामले सामने आये हैं जिनमें लोगों के व्यक्तित्व का गलत आकलन करने के कारण व्यसाय जगत ने बड़े पैमाने पर अपने ग्राहकों और क्लाइंट्स को खो दिया है। उनमें से एक बहुत ही विख्यात मामला हैदराबाद के निजाम का देखने में आता है जिनको 'रोल्स रॉयस' के शोरूम में उनके साधारण भेष-भूषा के कारण प्रवेश नहीं करने दिया गया। बाद में, उन्होंने 'रोल्स रॉयस' कार खरीदी और आदेश दिया कि उसके सामने के पहियों के चारों ओर बड़े झाडू लगाए जाएं और कार को हैदराबाद की सड़कों की सफाई करने के लिए भेज दिया जाय, ऐसा करना एक प्रतिष्ठित कार निर्माता कंपनी की सौरभौमिक शर्मिंदगी के लिए काफी था।

समीक्षात्मक सोच क्या है?

ओपन-माइंडेड इन्क्वाइरी करने की काबिलियत को समीक्षात्मक सोच कहते हैं। यह मानव सभ्यता की आधारशिला है। ऐसे व्यक्ति जो पूर्वाग्रह से प्रभावित होते हैं और किसी की सलाह पर गौर नहीं फर्माते वे कुँए के मेंढक की तरह होते हैं। अलग-अलग तरह के लोगों के संपर्क में आने और उनके अलग-अलग दृष्टिकोण पर अमल करने से खुले मन वाले लोगों की सोच का दायरा बढ़ता जाता है।

ओपन-माइंडेड का मतलब प्रासंगिक सबूतों को समझने के साथ-साथ उस पर आधारित एक तर्क तैयार करना होता है, इसके अलावा इसकी सत्यता और साकारात्मक समीक्षा के लिये भी उत्तरदायी रहना होता है। ओपन माइंडेड लोग किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के बाद भी अन्य विश्वसनीय स्रोत के तरफ से आये हुये प्रस्ताव पर पुनर्विचार के लिये सदैव तैयार रहते हैं। वे किसी भी निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए हमेशा अलग-अलग विकल्पों और संभावनाओं का सहारा लेते हैं और पूर्वकल्पनात्मक विचारों और सिद्धांतों में अपने आप को बाँधकर रखना पसंद नहीं करते हैं।

ऐसा देखने में आता है कि समीक्षात्मक सोच की क्षमता रखने वाले लोग समस्या संबोधन संबंधी कार्य करने से पहले समस्या से होने वाली हानि के दायरे तक अपनेआप को महदूद रखना पसंद नहीं करते क्योंकि सामने आनेवाली सभी समस्याओं को सुलझाने में उनका दृष्टिकोण एक समान होता है। यह तरीका उन लोगों से बिल्कुल अलग है जो गंभीरता से नहीं सोचते हैं क्योंकि उनके तर्क अक्सर चीजों के भावनात्मक सोच के नजरिये से रास्ता दिखाते हैं।

समीक्षात्मक सोच का महत्व

सभी तरह के पेशेवर क्षेत्रों में सफलता हासिल करने के लिये समीक्षात्मक सोच एक कुंजी की तरह है। समीक्षात्मक सोच सूचना की सावधानीपूर्वक व्याख्या करने में सहायक होती है और इसके साथ-साथ व्यवहारिक निष्कर्ष तक पहुँचने के लिये इस सूचना का बखूबी इस्तेमाल भी करती है। अवधारणाओं में सर्वभौमिक एकरूपता होने की वजह से समीक्षात्मक सोच के सिद्धांतों को किसी भी संदर्भ में लागू किया जा सकता है, हालांकि इनको जरूरत के हिसाब से लागू करना होता है।

निम्नलिखित क्षेत्रों में समीक्षात्मक सोच लागू होती है। −

मानव-शास्त्र मनोविज्ञान जीवविज्ञान
नागरिक-शास्त्र दर्शनशास्त्र पर्यावरण
इतिहास गणित कानून
राजनीति रसायन-विज्ञान नीति-शास्त्र
संगीत कला-कौशल व्यवसाय

ऐसे क्षेत्रों में यह अत्यंत जरूरी है कि सभी चीजों का विस्तारपूर्वक विश्लेषण, मूल्यांकन और व्याख्या मजबूत तर्क और अनुसंधान के माध्यम से की जानी चाहिये, चूँकि ऐसे क्षेत्रों में सफलता हासिल करने के लिये समीक्षात्मक सोच एक आवश्यक आवश्यकता है। ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ गहन ज्ञान और तार्किक सोच होने के बावजूद लोगों ने गलतियाँ की हैं क्योंकि वो इसके सिद्धांतों को लागू नहीं कर पाये क्योंकि वे इतने जटिल और अव्यवहारिक हैं कि अच्छे तरीके से लागू नहीं किये जा सकते।

समीक्षात्मक सोच के तहत पूर्वधारणा, पूर्वाग्रह, कल्पना, आत्मप्रतारणा, विरूपण, गलत सूचना आदि की पहचान करना शामिल है। संज्ञानात्मक मनोविज्ञान में शोध को देखते हुए, कुछ शिक्षकों का मानना है कि विद्यालयों को अपने विद्यार्थियों में समीक्षात्मक सोच की निपुणता और बौद्धिक गुणों में सुधार पर बल देना चाहिए।

समीक्षात्मक सोच हमें समस्याओं को पहचानने और उनके लिए समाधान ढूंढने में मदद करती है। इसके अलावा, यह हमें कार्यों के बीच प्राथमिकता देना भी सिखाती है ताकि हम समस्या को सुलझाने की प्राथमिकता को समझ सकें। यह सटीकता से डेटा को समझने के साथ-साथ उनके बीच तार्किक संबंधों के अस्तित्व की जांच करने में मदद करती है। निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद विभिन्न सामान्यीकरणों को जाँच हेतु उस सिद्धांत से गुजरना पड़ता है जिसको ध्यान में रखकर निष्कर्ष निकाला गया था।

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