लोगों का मानना है कि जितनी तेजी से वे किसी समस्या का समाधान करते हैं उनके पास समस्या को सुलझाने का उतना ही बेहतर कौशल होता है। यह विचार सामान्य लोगों के मन में पारंपरिक मूल्यांकन की तकनीकों की एक श्रृंखला के माध्यम से उनके बचपन से ही कूट-कूट कर भरा होता है। ऐसी तकनीकों को अंतिम अवधि की जाँच के तौर पर जाना जाता है जिसमें सीमित समय सीमा के भीतर कुछ सवालों के जवाब देने होते हैं।
यह सोच छात्रों को जल्द निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए प्रोत्साहित करती है पर इसे सर्वोत्तम निष्कर्ष नहीं माना जा सकता। ऐसा देखा गया है कि यह तरीका छात्रों की पार्श्विक चिन्तन पर एक विनाशकारी प्रभाव छोड़ता है। कल्पनात्मक जवाब देने के बजाय उन्हें किताबी सिद्धांतों के अनुसार संस्थापित किया जाता है। दूसरे शब्दों में नियमों को चुनौती देने के बजाय वे ऐसे नियमों का पालन भलिभाँति करना सीखते हैं, जो उनमें प्रगति और नवीनता भर देते हों। एक सरल प्रयोग से हम इस बात का अभिप्राय भलिभाँति जान पायेंगे।
निम्नलिखित शब्दों का टुकड़ा वास्तव में एक वाक्य है जिसमें से एक स्वर हटा दिया गया है। यदि आप स्वर को केवल ग्यारह बार ग्यारह स्थानों पर उपयोग करते हैं तो आपको वाक्य मिल जाएगा। यह पता लगाने की कोशिश करें कि वाक्य क्या हो सकता है।
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अधिकांश लोग जो इसका उत्तर जानने की कोशिश कर रहे हैं वे जल्दबाजी में ये मानने की गलती करेंगे कि पहला शब्द 'वेरी' है और इस प्रकार वे यह मानकर ये निष्कर्ष निकाल लेंगे कि छोड़ा हुआ स्वर 'ई' है। लेकिन ज्योंही वे आगे बढ़ेंगे तो उनको यह पता चलेगा कि यदि ग्यारह स्थानों पर ग्यारह बार 'ई' लगा दिया जाये तो इससे शब्दों के इन टुकड़ों से एक अर्थपूर्ण वाक्य नहीं बन पायेगा। उनके इस भ्रांति का कारण उनके द्वारा जल्दबाजी में लिया जाने वाला गलत निर्णय है कि पहला शब्द 'वेरी' है। इस तरह यह साफ है कि यहाँ वे गलत शब्द से अर्थपूर्ण वाक्य बनाने का व्यर्थ प्रयास कर रहे हैं।
जब हमें पूर्वाग्रहित धारणायें दूसरे तथ्यों के बारे में नये आयाम तलाशने से रोकती हैं तो हम उस सीमित सोच के अंतर्गत खुद के लिए एक समाधान पाने के प्रयास में फंस जाते हैं। दूसरे शब्दों में, हम बाकी सभी विकल्पों को बिल्कुल अलग समझते हैं या इस तरह की स्थिति में शब्दों में निहित अलग-अलग अंतर होने की वजह से पहेली सुलझाने के हमारे तरीके मेल नहीं खाते हैं।
अलग शब्द इस्तेमाल करके पहेली को हल करने की कोशिश करना कैसा रहेगा? चलिये हम "एवरी"शब्द को लेते हैं। आपको ऐसा लगेगा कि समस्या का समाधान हो गया है। ये शब्द मिलकर एक सार्थक वाक्य बनाते हैं, जो −"एवेरी फाइन एग्ज़ेंप्लार एक्सीड्स वॉट वी एक्सपेक्ट" के रूप में पढ़ा जाता है।
दुनिया भर में समस्या का समाधान करने वाले लोग "स्पीड़ वेब" के रूप में जाने जाते हैं, वे लोग ज्यादा से ज्यादा समस्या के समाधान तेजी से करने के लिये लालायित रहते हैं। उन्हें यह एहसास कराने की आवश्यकता है कि गति का होना भी आवश्यक है लेकिन यह समीक्षात्मक सोच के हिसाब से पर्याप्त नहीं है।
गति रचनात्मक सोच और निर्णायक विश्लेषण में सहायक होना चाहिए। जल्दबाजी वाले फैसले व्यक्तिगत निर्णय और व्यावसायिक स्तर दोनों के लिये विनाशकारी साबित होते हैं। विडंबना यह है कि जल्दबाजी में लिया गया फैसला गलतियों को सुधारने के समय अधिक हानिकारक साबित होता है। ऐसी गलतियों से आसानी से बचा जा सकता है यदि हम प्रारंभिक चरणों में नियोजन और निष्पादन पर उचित विचार करें।
जब हम व्यक्तिगत या व्यावसायिक संकट का सामना करते हैं तो हमें अपनी समस्या का ठीक-ठीक पता लगाने के साथ-साथ उन परिणामों को भी लेकर आगे बढ़ना चाहिये जो बेहतर और तेज़ हों। एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग दो-तिहाई प्रबंधक अपने संगठन के लिए 50% से कम बुद्धिशक्ति का उपयोग करते हैं।
आज के समय में खुद के कौशल में तेजी से सुधार करने के लिये टीम और संस्थान के सभी सदस्य या बहुत से लोग व्यकतिगत रूप से भी प्रशिक्षण लेते हैं। इसलिये अब बहुमूल्य वस्तु पर ज्यादा ध्यान ने देकर जरुरतों पर समीक्षात्मक तरीके से ज्यादा सोचने की जरूरत है।