समीक्षात्म सोच के पहलू


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तुरंत ही समाधान की चाह रखने वाली आज की दुनिया में समस्या का समाधान करने वालों के पास प्रायः पहले से किसी स्थिति से निपटने के लिये अच्छी तैयारी हेतु पर्याप्त समय नहीं होता है। यदि पर्याप्त समय प्रदान किया जाए तो कई लोग समस्याओं का सही समाधान ढूंढ़ सकते हैं। लेकिन जब किसी समस्या को उसी समय सुलझाने की ज़रूरत होती है तो लोग जल्दबाजी में फैसले ले लेते हैं।

जल्दबाजी में लिए गए फैसले अक्सर गलत होते हैं और समय बीतने के साथ इनका प्रभाव सामने आता हैं। क्योंकि जल्द समाधान खोजने के चक्कर में अक्सर कई महत्वपूर्ण मापदण्ड या तो छूट जाते हैं या फिर नज़रअंदाज़ कर दिये जाते हैं जिनकी महत्ता योजना के कार्यान्वयन के बाद के चरणों में पता चलती है।

जल्द फैसला लेने की क्षमता जन्मजात नहीं होती। यह एक ऐसा गुण जो किसी भी व्यक्ति में हो सकता है और इस कला को और भी निखारा जा सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि अलग-अलग परिस्थितियों में समस्या को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखना चाहिये ताकि आखिर में दिये गये समाधान विस्तृत और समावेशी हों।

समीक्षात्मक सोच के पहलू

समीक्षात्मक सोच के तीन महत्वपूर्ण पहलू समस्या सुलझाने के इस दृष्टिकोण पर निर्भर करते हैं −

  • जल्दी सोचने की प्रवृत्ति − एक ऐसा गुण है जिसके जरिये कई लोग अचानक सामने आनेवाले प्रश्नों का उत्तर तुरंत और सटीक तरीके से दे देते हैं जबकि दूसरे लोगों को घबड़ाहट के मारे उत्तर देने में असहजता होती है। ऐसी प्रवृत्ति में महारत हासिल करने के लिए बहुत ही अभ्यास की आवश्यकता होती है और आप इसमें एक समय-सीमा को खयाल में रखते हुये जितना जल्द सोचने का अभ्यास करेंगे, उतनी ही जल्दी आपको संतोषजनक उत्तर की प्राप्ति होगी।

  • समीक्षात्मक सोच − समस्या का समाधान करने वाले कई लोग पारंपरिक तरीकों से समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, हालांकि, जब उन्हें एक कठिन समस्या का सामना करना पड़ता है तो वे कुछ भी करने में सक्षम नहीं होते। इसके पीछे का कारण उनकी सोच है, जिसमें वे मानते हैं कि तत्कालीन स्थिति उनकी समस्या नहीं है और वे इस समस्या को हल करने में अपने कीमती समय को नहीं लगायेंगे बल्कि इसे दूसरे ऐसे कामों को पूरा करने में खर्च करेंगे जिन्हें वे कर पाने में सक्षम हैं। ऐसा करके वे अपने ऐसे विचारों और विश्लेषणात्मक क्षमता को प्रतिबंधित करते हैं जो समीक्षात्मक सोच को आगे बढ़ाने के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है।

  • विश्लेषणात्मक सोच − अपने जीवन में कई समस्याओं और परिस्थितियों का सामना करने और तार्किक और वैज्ञानिक तरीके अपनाकर भी हम इन स्थितियों को संभालने को लेकर इसके बारे में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं ले पाते हैं। इसलिये विश्लेषणात्मक सोच में समस्या को परिभाषित करने और समस्या के लिए संभावित समाधानों की सूची बनाने जैसे आयाम शामिल हैं। इसके बाद सबसे अच्छे समाधान का निर्धारण समस्याओं की पूरी सूची बनाकर किया जा सकता है।

समीक्षात्मक सोच का आत्मसात करने के लिये मनुष्य को खुले विचारों वाला होना जरूरी है, क्योंकि इससे लोग को अपने तत्कालीन सोच से बाहर निकल पाते हैं और प्रभावी ढंग से निष्कर्ष पर पहुँच पाते हैं। इसके कई फायदे हैं, जैसे यह दृढ़ निश्चय, संचार, और समस्या सुलझाने के कौशल को बढ़ाने में मददगार साबित होता है।

इसके अलावा समीक्षात्मक सोच हमारी भावनात्मक बुद्धिमता को भी विकसित करने में हमारी सहायता करती है। समीक्षात्मक सोच के लिए यह आवश्यक है कि, कोई व्यक्ति डेटा विश्लेषण के दौरान अपने परिप्रेक्ष्य को बदलकर समस्या के समाधान के प्रति अपना दृष्टिकोण बदले।

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